: कर भरोषा खुद पर तू

न  किसी से कोई उमीद कर
न कर किसी से कोई आस तू ,
सच कहता हूं मॉन ले मेरा
कहना कभी न होगा निराश तू,
खुद ही खुद पर कर भरोषा
अब बनजा सब से खास तू,,,,2
खुद पे भरोषा कर के चल
अपने कदमो पर नाज कर,
ना किसी की सुन कभी
ना हौसला तू हारना , वक़्त
तेरा बदलेगा तू हर अपने  काम को  कर्मठता से  ललकारना ,,,,2
टूट कर वो गिरते है जो औरो
के कन्धों के भरोशे खड़े होते है,
बाजिया वो हारते हैं जो जंग
के मैदान में शस्त्र दुसरो का निहारते हैं, कट रही होती हैं
उनकी बांहे और, वो मद्दत के
लिए औरो पुकारते है,,,,,2
कर भरोषा खुद पर तु
खुद का हौशला बुलन्द कर
अब किसी और के भरोशे लड़ना
व आगे बढ़ना बन्द कर , क्या कोई रोकेगा तूझे जो तेरा हौसला
चट्टान हो ,जीत ही जायेगा तू  चाहे
 सामने तेरे  कितना भी बड़ा तूफान हो,,,,,2
कौन तुझे क्या कहे इस बात
की न परवाह कर नेक नीयती
से तू अपने फर्ज का निर्वाह कर
कामयाबी कदम तेरे चुमकर ही जाएगी सारी दुनिया देखती हैं
देखती रह जायेगी,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
        (   रसिक बनारसी  )

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